Mom anal sex story – Indian mom tailor sex story – Tailor sex story: मेरा नाम मिहिर है, मैं बीकानेर का रहने वाला हूँ। उस वक्त मैं कॉलेज के पहले साल में था, उम्र करीब 19 साल। घर में सिर्फ मैं और मेरी माँ शीला ही रहते थे। पापा हमेशा बाहर टूर पर, बड़ा भाई दूसरे शहर में हॉस्टल में, बहन की शादी हो चुकी थी। माँ की उम्र करीब 40 थी, पर लगती थीं 32-33 की, बिल्कुल गोरा रंग, कसा हुआ 36-32-38 का फिगर, भरे हुए बूब्स और मटकती हुई गोल-गोल गांड। साड़ी में जब चलती थीं तो कॉलोनी के सारे मर्द उनकी गांड घूरते रहते थे। मैंने भी कई बार बाथरूम के झरोखे से उन्हें नहाते हुए देखा था, आधे नंगे तो सैकड़ों बार, पर पूरा नंगा कभी नहीं देख पाया था।
ये बात आज से करीब दो साल पुरानी है। माँ का एक ब्लाउज गिरीश नाम के टेलर ने थोड़ा ढीला सील दिया था। माँ को ये बात इतनी चुभ गई कि गुस्से से लाल हो गईं। मुझे बोलीं, “चल मिहिर, आज उस हरामी की दुकान पर चलते हैं, इसकी खबर लेती हूँ।” मैंने मना किया, पर वो नहीं मानीं और मुझे भी घसीटकर ले गईं।
गिरीश की दुकान हमारे घर से थोड़ी दूर, एकदम सुनसान जगह पर थी। शाम के सात बज रहे थे, दुकान में कोई ग्राहक नहीं था, सिर्फ गिरीश अकेला बैठा था। मज़बूत कद, चौड़ी छाती, मोटी मूँछें, उम्र करीब 45। माँ ने गुस्से में ब्लाउज उसके मुँह पर दे मारा और खूब डाँटा। गिरीश मुस्कुराता रहा, फिर बोला, “भाभीजी, एक बार अंदर जाकर पहन के दिखाओ ना, मैं अभी फिट कर दूँगा।”
माँ अंदर चली गईं, मैं बाहर कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी देर बाद माँ ब्लाउज पहनकर बाहर आईं। गिरीश ने ब्लाउज चेक करने के बहाने उनका साड़ी का पल्लू जानबूझकर नीचे गिरा दिया। माँ का ब्लाउज गहरे गले का था, आधे से ज्यादा बूब्स साफ दिख रहे थे। गिरीश की नज़र वहीं अटक गई, उसकी पैंट में तुरंत उभार दिखने लगा। वो हँसते हुए बोला, “भाभीजी, अंदर चलो ना, मैं आपके बूब्स को हाथ से दबा-दबाकर एकदम परफेक्ट फिट कर दूँगा।”
माँ पहले तो झिझकीं, पर फिर चुपचाप उसके साथ अंदर चली गईं। अंदर एक छोटा सा कमरा था, पुराना सोफा, एक टीवी और दीवार पर बड़ा सा आईना। दरवाज़ा बंद हुआ, पर कुंडी ठीक से नहीं लगी थी, थोड़ा सा गैप रह गया था। मैं चुपके से उठा और झाँकने लगा।
सबसे पहले गिरीश ने माँ का पल्लू फिर से नीचे किया, फिर धीरे-धीरे ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए। माँ ने कुछ नहीं बोला। फिर उसने ब्रा को भी ऊपर उठा दिया। माँ के गोरे-गोरे भरे हुए बूब्स बाहर आ गए, गुलाबी निप्पल पूरी तरह तने हुए। गिरीश की आँखें चमक उठीं। उसने दोनों बूब्स हाथों में भरकर मसलने लगा और बोला, “वाह भाभीजी, कितने रसीले माल हो तुम, तुम्हारे पति तो बहुत लकी हैं।”
माँ की साँसें तेज़ हो गईं, वो हल्के से मुस्कुराईं और बोलीं, “लकी क्या, वो तो काम के चक्कर में हमेशा बाहर रहते हैं, मेरी रातें अकेली ही कटती हैं।” बस ये सुनते ही गिरीश ने माँ का एक निप्पल मुँह में लिया और ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा, दूसरा हाथ साड़ी के अंदर घुस गया। माँ की आह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… निकलने लगी।
फिर गिरीश ने माँ को सोफे पर लिटाया, साड़ी और पेटीकोट ऊपर उठाया, काली पैंटी नीचे खींच दी। माँ की गोरी चूत हल्के बालों वाली, पूरी गीली चमक रही थी। गिरीश ने घुटने टेककर माँ की चूत चाटनी शुरू कर दी, जीभ अंदर तक घुसा रहा था। माँ की कमर अपने आप ऊपर उठने लगी, वो दोनों हाथों से उसके सिर को दबाते हुए चिल्ला रही थीं, आह्ह्ह… गिरीश… बहुत दिन बाद… आह्ह्ह्ह… चूसो… पूरी चाट जाओ… ऊईईई माँ…
फिर गिरीश ने खड़े होकर अपना पैंट खोला। उसका लंड देखकर मेरी भी साँस रुक गई, करीब 8 इंच लंबा, बेहद मोटा, साँप जैसा खड़ा था। उसने लंड माँ की चूत पर रगड़ा, माँ खुद ही पैर फैलाकर बोलीं, “डाल दो अब… और मत तड़पाओ…” गिरीश ने एक ज़ोर का धक्का मारा, आधा लंड अंदर चला गया। माँ की चीख निकली, आआअह्ह्ह… धीरे हरामी… बहुत मोटा है… फिर खुद ही गांड ऊपर उठाकर पूरा लंड अंदर ले लिया।
अब गिरीश ने स्पीड पकड़ ली, माँ के बूब्स ज़ोर-ज़ोर से मसलते हुए ठोकने लगा। कमरे में सिर्फ थप-थप… थप-थप… और माँ की आवाज़ें गूँज रही थीं, आह्ह्ह… चोदो… और ज़ोर से… फाड़ दो मेरी चूत… आह्ह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्ह… ऊईईई… मैं बाहर खड़ा अपना लंड सहला रहा था।
15-20 मिनट तक गिरीश ने माँ को अलग-अलग पोज़ में चोदा, कभी घोड़ी बनाकर, कभी लिटाकर, कभी उठाकर दीवार से सटाकर। माँ दो बार झड़ चुकी थीं, उनकी चीखें पूरे कमरे में गूँज रही थीं। फिर गिरीश ने लंड निकालकर माँ के मुँह में ठूँस दिया। माँ ने पहली बार किसी का लंड चूसा, ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग… गों गों गों… पूरा गले तक ले लिया। गिरीश ने मुँह में ही झड़ दिया, माँ ने सारा माल निगल लिया।
पर उसका लंड अभी भी खड़ा था। उसने माँ को फिर से लिटाया और तीसरी बार चूत में पेल दिया। इस बार और भी तेज़ चुदाई की। माँ अब पूरी तरह पागल हो चुकी थीं, आह्ह्ह्ह… बस गिरीश… फाड़ दी चूत… ऊईईई माँ… आह्ह्ह्ह… फिर गिरीश ने माँ को उल्टा किया और बोला, “अब असली मज़ा तो तुम्हारी गांड में है भाभीजी।”
माँ घबरा गईं, बोलीं, “नहीं गिरीश… गांड कभी नहीं मारी… पति को भी मना किया है… प्लीज़…” पर गिरीश ने दो ज़ोर के थप्पड़ मारे, मशीन का तेल लिया, माँ की गांड में उँगली घुसाई, फिर लंड सटाया। एक ज़ोर का धक्का मारा, आधा लंड अंदर घुस गया। माँ की चीख निकली, आआआह्ह्ह्ह… मर गई… निकालो… बहुत दर्द हो रहा है… आँसू निकल आए।
फिर गिरीश ने दूसरा ज़ोर का धक्का मारा, पूरा लंड गांड में घुस गया। माँ बुरी तरह रोने लगीं, पर गिरीश ने उनकी कमर पकड़कर धीरे-धीरे धक्के देने शुरू कर दिए। पहले सिर्फ दर्द था, फिर धीरे-धीरे माँ को मज़ा आने लगा। वो खुद गांड पीछे करने लगीं, आह्ह्ह… आअह्ह्ह… गांड में भी इतना मज़ा… चोदो गिरीश… और ज़ोर से… गिरीश ने 20 मिनट तक गांड मारी और आखिर में सारा वीर्य माँ की गांड में ही छोड़ दिया।
रात के साढ़े आठ बज चुके थे। माँ उठ भी नहीं पा रही थीं, पैर काँप रहे थे, गांड और चूत दोनों सूज गए थे। गिरीश ने उन्हें प्यार से कपड़े पहनाए, फिर अपनी गाड़ी में हमें घर छोड़ा। घर पहुँचते ही मैं बाथरूम में घुस गया, माँ को चुदते देखकर मेरा लंड फट रहा था, तीन बार मूठ मारकर शांत किया।
उस दिन के बाद गिरीश रोज़ घर आने लगा। कभी माँ खुद बुलातीं, कभी जबरदस्ती आकर चोदता। किचन में, बाथरूम में, मेरे कमरे के बाहर तक चुदाई होती। माँ अब पूरी तरह उसकी रंडी बन चुकी थीं, गांड भी खुलकर मारवाती थीं, कभी 69 करते, कभी घोड़ी बनकर चिल्लातीं, “और ज़ोर से गिरीश… फाड़ दो आज…” मैं चुपके से देखता और मूठ मारता रहता।
समाप्त।